British East India Company : ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की शुरुवात
सन १५९९ में लंडन के कुछ साहसी ( हिमती ) व्यापारी एक साथ आकर ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई। ३१ दिसम्बर १६०० में इंग्लैंड की रानी एलिझाबेथ ने इस कंपनी को भारत और पूर्व के कुछ देशो के साथ व्यापर करने के लिए १५ साल का ( अधिकार ) सनद दी।
सन १५९९ में लंडन के कुछ साहसी ( हिमती ) व्यापारी एक साथ आकर ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई। ३१ दिसम्बर १६०० में इंग्लैंड की रानी एलिझाबेथ ने इस कंपनी को भारत और पूर्व के कुछ देशो के साथ व्यापर करने के लिए १५ साल का ( अधिकार ) सनद दी। १५ साल की मदद ख़तम होने से पहले इंग्लैंड का राजा जेम्स पहला ( १ ) ने सन १६०९ में इस कंपनी को नयी सनद देकर अमर्यादित काल व्यापार का अधिकार दिया। सन १६०० में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई , इस कंपनी का मुख्य हेतु भारत और पूर्व के देशो से ज्यादा से ज्यादा व्यापार करना था। ३१ दिसम्बर १६०० को इंग्लैंड की रानी एलिझाबेथ ने इस कंपनी को पूर्व के देशो से व्यापार करने का अधिकार दिया था। रानी एलिझाबेथ का इस कंपनी को सहायता तो थी , पर ओ इस कंपनी की हिस्सेदार भी थी। सन १६११ साल को ग्लोब नाम के अंग्रेज जहाज अंग्रेजी व्यापारियों को लेकर निझामपट्टनम और मछलीपट्टनम नाम के स्थान पर उतरे। मछलीपट्टनम पे ही इस व्यापारियोंने वखार की स्थापना की , यहाँ से ही अंग्रेज लोग गोवलकोंडा राज्य में कॉटन ,रेशम ( कपडे ) , हिरे ,मोतियो का व्यापार करने लगे। सन १६१९ में अंग्रेजोने पुलिकत में डच व्यपारियोसे समझोता किया ,और १६२८ में अंगेजोने गोवलकोंडा के सुल्तान से व्यापार करने की परवानगी ली।
सन १६२० में डच ने तंजावर के नायक से उनके राज्यों में व्यापार करने की परवानगी ली , उन्होंने फिर टक्यूबर ठिकान पर वसाहत बनाई। फिर डच ने बंगाल में व्यापार की शुरुवात की , उन्होंने हुगली किनारेपर चिनसुरा ठिकान पे अपना व्यापारी केंद्र शुरू किया।और कासिम बाजार में रेशम का कारखान शुरू किया इस कारखाने में ७०० से ८०० मजदुर काम कर रहे थे। डच के बाद अंग्रेजोने भी बंगाल में प्रवेश किया ,अंग्रेजोने भी इस जगह रेशम का कारखाना शुरू किया। आगेचलकर सन १६२६ में आरमगाव और सन १६४० में मद्रास तक व्यापार का क्षेत्र काबिज किया। सन १६६७ में गोवालकोण्डा के सेनापति मीर जुमला से मद्रास क्षेत्र के आसपास व्यापार करने की परवानगी प्राप्त की , अंग्रेजोने बंगाल में हरिहरपुर और बालासोर इस जगह पर और १६५१ साल में हुगली इस ठिकान पर व्यापारी केंद्र की स्थापना की। इतना ही नहीं बंगाल के तत्कालीन सुभेदार शाहजादा शाहशुजा ने बंगाल में विनाचूँगी (नो कमीशन ) व्यापार करने की अनुमति ली। और सम्राट बहादुर शाह और बंगाल के सुभेदार मुर्शिद कुली खान ने भी अंग्रेजो को बेहद सारी छूट दी।
ईस्ट इंडिया कंपनी ने सूरत में वखर स्थापन करने के लिए परवानगी मांगने को सन १६०९ में कॅप्टन हॉकिन्स को मुघल सम्राट जहांगीर के दरबार में भेजा गया। पर जहांगीर ने पोर्तुगीजोके दबाव के वजह से सूरत में वखर स्थापन करने की परवानगी नहीं दी । फिर ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के पश्चिम किनारो पे व्यापर करने का प्रयास किया , सन १६०३ में जॉन मिडलरोन ने आग्रा में सम्राट अकबर की मुलाखत लेकर गुजरात में व्यापार करने की परवानगी हासिल की। फिर १६१२ में अंग्रेजोने सूरत और खंबायत खाड़ी और अन्य ३ ठिकान अहमदाबाद , बुरहानपुर , आग्रा और अजमेर पर अपने व्यापार केंद्र स्थापन किये। सन १६१८ में अंग्रेज राजदूत (Ambasaadar) सर टॉमस रो ने मुघल सम्राट जहाँगीर एक और शहजादा खुर्रम एक से व्यापारी परवाना प्राप्त किया। फिर सन १६६५ में अंग्रेजोने मुंबई में व्यापारी वखर स्थापन की , और इसी जगह अंग्रेजोके मुख्य कार्यालयों की स्थापना हुई।
इसी वजह से सूरत का महत्त्व कम हुआ , इस तरह किसी भी तरह की जकात न देते भारत में अलग – अलग जगह पर व्यापार करने की परवानगी ली। इसी वजह से कंपनी के व्यापार में बढती हुई ,फिर अंग्रेजोने यहाँ पर सूती कपडे ,रेशम के कपडे ,लोहा ,नील , हिरे , मोती ,कागज ,चमड़ी का सामान ,कच्ची चमड़ी कपास ,गालीचे ,अफीम , चीनी , मसाले , अद्रक , चन्दन , हिंग , और बहुमूल्य रत्नो का व्यापार भारत में किया। ये सभी वस्तुए भारत से विदेश भेजी जाती थी। भारत और पूर्व के देशो से इखट्टा व्यापार और भारत के व्यापारी से स्पर्धा ये कंपनी को नहीं चाहिए थी। इसका मतलब ये था ब्रिटिशोको भारत के व्यापार पर खुद की मक्तेदारी (हक़ ) चाहिए था । इसके लिए ब्रिटिशोको राजकीय सत्ता का पाठबल बेहद आवश्यक था , कंपनी को राजकीय सत्ता प्राप्ति की इच्छ्या हुई। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की शुरुवात सिर्फ व्यावसाइक रूप से हुई थी , इस कंपनी का हेतु सिर्फ भारत से व्यापार करना था। इस व्यवसाइक संघटना का रूपांतर बाद में एक राजकीय संघटन में हुआ। शुरुवात में कंपनी को साम्राज्य की आवश्यकता नहीं थी , पर आगे चलकर कंपनी को भारत की राजकीय अस्थिरता और दुर्बल राजसत्ता का फायदा हुआ। २३ जून १७५७ में प्लासिकी लड़ाई ने कंपनी की बंगाल में सत्ता की जेड स्थापन की ,और २२ अक्टूबर १७६४ में हुए बक्सर की लड़ाई ने बंगाल में कंपनी का पूरा वर्चस्व निर्माण हुआ। आगेचलकर कंपनी ने धीरे-धीरे भारत के सभी राज्य पर कब्ज़ा किया और उसी जगह अपनी राजकीय सत्ता स्थापन की , इस कार्य में लॉर्ड क्लाईव ,वॉरेन हेस्टिंग्ज , लॉर्ड कॉर्नवॉलिस , लॉर्ड वेलस्ली और लॉर्ड डलहौसी इन्होने महत्त्व पूर्ण योगदान दिया। इसी तरह कंपनी का भारत में व्यापारी विकास तो हुआ , पर राजकीय सत्ता भी स्थापन हुई।