Ram Mandir : क्या है भगवान राम मंदिर के पीछे का इतिहास .

Ram Mandir : राम मंदिर और बाबरी मस्जित का विवात कब और कैसे शुरू हुआ , क्या है राम मंदिर से लेकर हनुमान गड़ी तक की पूरी कहानी जानते है विस्तार से।

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Ram Mandir : राम मंदिर और बाबरी मस्जित का मुद्दा हिन्दू और मुस्लिम धर्मो के आस्था से जुड़ा हुआ था , तो कुछ पोलिटिकल पार्टिया इस मुद्दे को अपना अजेंडा बनाकर दोनों ही धर्मो में तनाव निर्माण करने का काम सदियोसे करती आ रही है। सन १८५५ के आते आते आयोध्या में सांप्रदायिक तनाव की परिस्तितिया निर्माण होने लगती है।

आयोध्या में एक पूजनीय स्थल को लेकर हिन्दू पक्ष और मुस्लिम पक्ष में विवाद होने लगे , इसी जगा को लेकर हिन्दूओ का कहना था की इस जगह मंदिर था , तो मुस्लिमो का कहना था इसी जगह मस्जित थी , इसी मस्जित को तोड़कर यहाँ मंदिर बनाया गया है। जिस जगह को लेकर हिन्दू मुस्लिम झगड़ रहे थे ओ जगह बाबरी मस्जित वाली नहीं थी , जिस जगह को लेकर ये झगड़ा और प्रतिदावे हो रहे थे ओ जगह थी हनुमान गड़ी की। फिर ये विवाद बाबरी मस्जित तक कैसे पोहचा जानते है सविस्तर में।

हनुमान गड़ी : 

सन १८०० सो में रामानंदी संप्रदाय के साधु अभय रामदास का अयोध्या आना जाना होता था , अयोध्या रामानंदी सप्रदाय के लोग आपने आस्ता का केंद्र मानते थे। ये साधु अयोध्या के एक पहाड़ी पर जाते थे जहा हनुमान जी की एक मूर्ति थी , कहा जाता है की इसी पहाड़ी पर हनुमान जी ने मंदिर बनाने का आदेश बाबा अभय दास को सपने में आकर दिया था।

इसी पहाड़ी पर शैवा संप्रदाय के साधु भी पूज्या अर्चना करते थे , पर साधु अभय दस ने आपने कुछ लोगो को साथ लेकर शैवा संप्रदाय के साधु पर हमला करके इस पहाड़ी को अपने कब्जे में ले लिया। फिर आगे जाकर मुग़ल गवर्नर सादत अली खान ने इस पहाड़ी जमीन को बाबा अभय दास को दिया , इस मंदिर को बनाने के लिए सादत खान के उत्तर अधिकारियोंने भी धन देकर करमुक्त जमीन भी दि। इस मंदिर का काम आगे चलकर साल १७९९ में जाकर पूरा हुआ है।

हनुमान गड़ी ( पहाड़ी ) रामानंद संप्रदाय के तीन प्रमुख आखाड़ो से एक है , ये निर्वानी अखाड़े की महत्वपूर्ण गद्दी बनी। सभी ठीक से चल रहा था पर सन १९५५ में ये मंदिर को लेकर हिन्दू मुस्लिम समुदाय में विवाद होने लगता है। कहा ज्याता है की अवद में एक मौलाना थे गुलाम अली शाह इसी मौलाना ने कहा की हनुमान पहाड़ी पर मंदिर बन्नेसे पहले यहाँ एक फ़क़ीर की मजार भी थी , इसी बात का प्रचार मौलाना आपने लोगो में करने लगे।

इसी मौलने ने मश्जित से बैरागी यो का कब्ज़ा छुड़ाने का प्लान तैयार किया गया , और एक तारीख फिक्स की तारीख थी २८ जुलाई १८५५। अयोध्या में मौजूद अंग्रेज अधिकारी एपी कैप्टन कुछ सैनिकों की टुकड़ी इसी पुरे स्तिति पर नजर रख रहे थे। कैप्टन ने इस पूरी घटना का रिपोर्ट पोलिटिकल एजेंट मेजर जनरल आउट्रम को दिया , इस रिपोर्ट के मुताबिक मौलाना सहा गुलाम अली के नेतृत्व में कुछ लोग मश्जित में जमा होने लगे थे।

५०० से ६०० लोगो ने दोपहर के नमाज के बाद हनुमान गड़ी पर हमला किया , पर हनुमान गड़ी के बैरागी और कुछ स्तानिक भक्तो की ८००० से ९००० की भीड़ मुस्लिम हमलावरों की राह देख रही थी। गड़ी के नजदीक आतेहि मुस्लिम हमलावरों के पैर भीड़ को देखकर लड़खड़ाने लगे , सभी अपनी जान बचाते भागने लगे उसमेसे कुछ लोग अपनी जान बचाने के लिए मस्जित की ओर भागते है।

कहा जाता है की इस हमले में ८० से ९० मुस्लिमो की मौत हुई थी , अभीतक बाबरी का नाम इस मामले में नहीं लिया गया। पर सन १८५८ में अवध के बड़े बड़े जहाँगीर दारो ने मुस्लिम नवाब को साथ देने के आलावा अंग्रेजोको साथ देना सही समजा , तो हनुमान पहाड़ी के महन्तो ने भी अंग्रेजो का साथ देना उचित समझा। और अंग्रेजो ने भी इन महंतोंका के साथ देने के बदले उनको सरकारी जमीन जो कोई काम की नहीं थी , ऐसी जमीन जो बाबरी मस्जित के पास थी उसे रामानंदी संप्रदाय के पास सोप दी।

इसी जमीं पर एक चबूतरा बनाया गया जो बिलकुल बाबरी मस्जित के नजदीक था , जिसका नाम राम चबूतरा था। कहा जाता है की जहा राम चबूतरा है , वही श्री राम भगवन का जन्म स्थान है , और इस चबूतरे की रखवाली की जिम्मेदारी निर्मोहिया आखाड़े को सोप दी। अब तक किसीने भी बाबरी मस्जित ही राम जन्म भूमि है किसी ने नहीं कहा था , सभी राम चबूतरे को ही राम जन्म भूमि मानते थे।

सन १८५८ नवंबर में मौलवी मोहम्मद असगर खलील ने फ़ैजाबाद के मजिस्ट्रेड के सामने एक शिकायत करायी , कुछ बैरागी अवैध रूपसे एक चबूतरा बना रहे है। पर सन १८५८ से लेकर सन १८८४ तक मुस्लिम पक्ष से ऐसी शिकायते दर्ज होती रही , इसके चलते बाबा रघुबीर दास कोर्ट में जाते है , पर कोर्ट का कहना था की इस तरह मंदिर बनाने से साम्प्रदाईक स्तिति बिघड सकती है , कई जाने भी जा सकती है , इसिलिये स्तिति को बरक़रार रखा जाये।

आगे चलकर यह मामला ठंडा होता है। पर सन १९३४ में सहजापुर में गौ हत्या को लेकर दंगे भड़कते है , इसी दंगे के वक्त कुछ साधु ने बाबरी के एक हिस्से को तोड़ दिया , स्तिति हात से बहार न जाये इसलिए अंग्रेजी सरकार के अपने पैसे से बाबरी के टूटे हिस्से को बनाया।

आगे चलकर सन १९४९ में २२ और २३ दिसम्बर के रात को बाबा अभिराम दासने उनके कुछ महंतो को लेकर भगवन श्री राम की मूर्ति को बाबरी मस्जित के मुख्य गुम्मद के पास रखा। फिर बाबा और उनके महंत दावा करने लगे की स्वय्यम राम जी अपने जन्म स्थान पर प्रगट हुए है , और इसी दावे से हनुमान गड़ी और राम चबूतरे का दावा फीका पड गया।

फिर दावा होने लगा की राम लल्ला का जन्म इसी बाबरी मस्जित के मुख्य गुम्मद के पास ही हुआ है , तो राम लल्ला का असली मंदिर इसी जगा पर था। पर ऐसा हुआ ही नहीं था , श्री राम भगवान स्वय्यम प्रगट नहीं हुए थे , बल्कि राम जी की मूर्ति को मस्जित के अंदर रखा गया था। ये सारी घटना नियोजित थी , इस सारी घटना का नियोजन फ़ैजाबाद के डीएम केके नैय्यर , गोरखपुर मठ के महंत दिग्विजयनाथ , और दिगम्बरी आखाड़े के महंत रामचंद्र परमहंस तीनो के मिलने से इस कहानी की शुरवात साल १९४६ में शुरू हुई।

१९४९ में घटने वाली इस कहानी की शुरवात साल १९४६ में हो होती है , केरल में रहने वाले केके नैय्यर भारतीय सिविल सर्विस के अधिकारी थे , १९४६ में उनकी पोस्टिंग गोंडा जिले में हुई थी। केके नैयर टेनिस के बेहद ही शोकिंग थे , वहा उनकी पहचान होती है महाराजा पतेश्वरी प्रसाद सींग और गोरख पीठ के महंत दिग्विजयनाथ से। तीनो की एकदूसरे अच्छी पहचान होती है , खेल की बाते होते होते अब राजनीती पर भी ये लोग बात करने लगे , केके नैय्या और दिग्विजयनाथ को कांग्रेस के सेक्युलर देश का आइडिया पसंद नहीं आया था।

इसी के चलते देश में दो बड़ी घटना होती है , नाथूराम गोडसे ने महात्मा गाँधी की हत्या कर दी और दूसरी घटना का केंद्र था आयोध्या। साल १९४६ के प्रोव्हीशनल चुनाव में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के १३ सदस्य प्रोव्हीशनल असेम्बली में पोहचते है , तभी कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी कांग्रेस के साथ ही काम करती थी।

पर दोनों में दिन प्रतिदिन पोलिटिकल मतभेत बढ़ते ही जा रहे थे , १४ साल साथ रहने वाली कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ने सन १९४८ में कांग्रेस पार्टी से अलग होने का विचार किया और एक नयी पार्टी निकली जिसका नाम सोशिलिस्ट पार्टी (इंडिया) रखा गया। पार्टी अलग होने से इन १३ सीटों पर फिरसे चुनाव १९४८ में होने थे , और ये कांग्रेस के नेता गोविन्द वल्लभ पंत के लिए सुनेहरा मौका था , गोविन्द वल्लभ पंत ने कांग्रेस के बागी आचार्य नरेंद्र देव के खिलाफ अफवा फैलाना शुरू किया।

इस काम में उनको साथ मिला पुरषोत्तम दास टंडन का , पुरषोत्तम दास टंडन की प्रतिमा एक कट्टर हिन्दू की थी , दोनों ने मिलकर (पंत और टंडन) योजना बनाई की फ़ैजाबाद उपचुनाव में नास्तिक समाजवादी आचार्य नरेंद्र देव के खिलाफ एक हिन्दू सन्यासी को ये टिकिट मिले। पर कांग्रेस पहलेसे ही फ़ैजाबाद उपचुनाव के लिए सिद्धेश्वरी प्रसाद के टिकिट पर मोहर लगा चुकी थी , पर पंत और टंडन दोनोही सिद्धेश्वरी प्रसाद टिकिट कटवाके एक हिन्दू छबि वाले नेता को फ़ैजाबाद से लढवाना चाहते थे।

और दोनों इस लिए प्रयास करते है , और सिद्धेश्वरी का टिकिट कटवाने में सफल हो जाते है , कांग्रेस यहासे हिन्दू नेता बाबा राघव दास को नरेंद्र देव के खिलाफ खड़ा करते है। गोविन्द पंत प्रचार शुरू होते ही मंदिर और महंतो को मिलकर बाबा राघव दास के समर्थन में माहौल बनाते है। पंत इस चुनाव को बेहद ही रोचक बनाते है , फ़ैजाबाद के इस चुनाव को पंत ने हिन्दू – मुसलमान का चुनाव बना दिया , २८ जून १९४८ के दिन वोटिंग होती है , और दूसरे ही दिन नतीजे आते है जो चौकाने वाले थे।

सोशलिस्ट नेता आचार्य नरेंद्र देव को ४०८० वोट मिलते है , तो बाबा राघव दास को ५३९२ वोट मिलते है , और बाबा राघव दास इस चुनाव को जित जाते है। और इसी चुनाव ने कांग्रेस की दिशा बदल दी , पहली बार कांग्रेस ने धर्म का उपयोग किया था। २२ और २३ दिसम्बर १९४९ के रात बाबरी मस्जित के गुम्मद में घुसकर राम लल्ला की मूर्ति रखने की घटना जो होने जा रही थी , उसका वातावरण फ़ैजाबाद चुनाव के बाद इस घटना की जड़े बुनाई गई थी।

दिगम्बरी आखाड़े के महंत रामचद्र दास हिन्दू महासभा के सक्रीय सदस्य थे , और आयोध्या ऐकाई के अध्यक्ष भी थे , १९५१ में देश में पहले आम चुना होने जा रहे थे। हिन्दू महासभा मंदिर आंदोलन के राजनितिक महत्त्व को जानती थी , और योजना बनाई गई की काशी , मथुरा , आयोध्या में मंदिर आंदोलन शुरू किया जायेगा।

और अखिल भारतीय रामायण महासभा का गठन किया जायेगा , इस सभा का काम था जगह जगह जाकर राम चरित्र का पठान करना था। महंत रामचंद्र दास ने आपने पुराने साथी बैरागी अभिराम दास को इस संगठन का संगठन सचिव बनाया , और इसी अभिराम दस की एक कार्रवाई आगे चलकर देश के राजनीती का चेहरा बदल देती है।

अभिराम दास :

१९३४ में अभिराम दास अपना घर छोड़कर अयोध्या आये थे , अयोध्या में अभिराम दास की मुलाखत होती है हनुमान गड़ी के एक बैरागी सरयूदास से। वो सरयूदास को अपना गुरु मानते है , और हनुमान गड़ी का बैरागी बनते है , सन्यास लेने के बाद वह आपने परिवार से एक दशक तक मिलते नहीं है। पर १९४४ उनके छोटे भाई श्रीकृष्ण मिश्रा ने उनको खोज निकला , सन्यास के १२ साल पुरे होने के बाद हर सन्यासी को आपने घर भिक्षा लेने जाना पड़ता है।

जब अभिराम दास आपने गांव पहुंचे तो वे आपने सन्यास का पालन नहीं कर पाते , और उनकी अपने परिवार में रूचि बढ़ने लगती है , वे आपने तीन भाई और चार ममेरे भाई को लेकर आयोध्या पढ़ने के लिए आते है। राम घाट मंदिर के बंदोबस्त की जिम्मेदारी अभिराम दास पर थी , उन्होंने वही अपने भाई यो के रहने की वेवस्था की। २२ दिसम्बर १९४९ के रात १० बजने के करीब अभिराम दास राम घाट बने स्थित मंदिर पोहचते है , पर योजना के मुताबिक अभिराम दास को इस जगह नहीं होना था , पर कोई भी स्थिति योजना के तहत नहीं हो रही थी।

योजना के मुताभिक अभिराम दास और दिगम्बरी आखाड़े में महंत रामचंद्र परमहंस को बाबरी मस्जित में एक साथ घुसना था। पर अचानक ऐन मोके पर ही महंत रामचंद्र दास गायब हो जाते है , इसी बातसे अभिराम दास परेशान थे फिर भी रात ११ बजे अभिराम दास ने आपने भाईयो को खड़े होने के लिए कहा। इसके बाद अभिराम दास ने आपने छोटे भाई उपेंद्र मिश्रा को आपने ममेरे भाई उगल का हाट थांबणे को कहा और अभिराम दास में सबके सामने कहा अगर में सुबह वापिस नहीं लौटता हु , तो मेरे बाद तुम लोगो के देखभाल की जिम्मेदारी युगल किशोर की होगी।

इसके बाद अभिराम दास कंबरे से तेजी से बाहर निकल जाते है , उनके पीछे पीछे उनके भाई उगल किशोर और इंदु झा भी निकल पड़ते है , उनको बिलकुल ही पता नहीं था की आगे चलकर क्या होने वाला है। अभिराम दास ८ से १० मिनट में चलते हुए राम चबूतरे तक पोहचते है तभी वहा हनुमान गड़ी के बैरागी बृन्दावन दास भी आ जाते है। उनके हात में श्री राम जी की मूर्ति भी होती है , निर्मोहिया अखाड़े के अभिराम दास ने इस मूर्ति को हात में पकड़ लिया और वे आगे बढ़ जाते है , उनके सामने बस एक दिवार होती है जिसे अभिराम दास बडीही आसानी से पार कर जाते है।

मस्जित के अंदर जाकर अभिराम दास राम लल्ला की मूर्ति को रख देते है। अगले दिन इस घटना ने भारत की राजनीती में भूकंप लाया , और कहने जाने लगा की स्वयंम भगवान का प्रगटोस्सव हुआ है ,और कुछ लोग प्रचार करने लगे की स्वयंम भगवान ही अपने जन्म भूमि पर प्रगट हुए है। और लोग कहने लगे की बाबरी मस्जित ही वे जगह है जहा पर भगवान श्री राम लल्ला का जन्म हुआ था , इससे पहले कभी भी इस जगह का उल्लेख राम जन्म भूमि नहीं किया गया था।

इसके तुरंत बाद अभिराम दास और अन्य ६० लोगो पर FIR दाखिल की जाती है। साल १९९३ में हिन्दू बाबरी मस्जित पर हमला करते है और बाबरी को तोड़ देते है , इसके बाद बैठी लिब्रहम कमीशन की कमिटी ने कहा की राम लल्ला की मूर्ति के प्रगट होना एक बड़ी शाजिस का हिस्सा है , इस साजिस में लोकल प्रशाशन भी शामिल था।

आज भी लोगो को लगता है की राम लल्ला स्वयंम बाबरी मस्जित में ही प्रगट हुए है , तो पूरा इतिहास आपके सामने है। इसी भोले भारतीयों का फायदा कुछ पोलिटिकल पार्टिया सालो से ले रही है , आम जनता को आपने स्वार्थ के लिए जाती और धर्म में बांध रखा है। मस्जित और मंदिर से सामान्य जनता को बाहर ही नहीं आने दिया जा रहा है , कोई भी पार्टी शिक्ष्या , गरीबी , महंगाई और बढ़ती बेरोजगारी पर ना बात करती है , ना करने देती है। बस आपको सोचना है , की जाती धर्म पर राजनीती हो या भारत के सुधारना पर ध्यान दिया जाये।

> इस आर्टिकल को हमने डिजिटल मिडिया , किताब और न्यूज़ पेपर सभी को अद्धयन करके लिखा है , हमारा हेतु किसीभी जाती या धर्म को ठेस पोहचना नहीं है , या किसीभी पोलिटिकल पार्टी या नेता से हमारा कोई सबंध नहीं है। 

 

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